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घर पर मिट्टी के परीक्षण के चार आसान तरीके

घर पर मिट्टी के परीक्षण के चार आसान तरीके

किसान भाइयों आप यह तो जानते ही हैं कि मिट्टी अच्छी हो तो फसल अधिक हो सकती है। मिट्टी की कमियों को दूर करके फसल उगायी जायेगी तो अधिक फायदा होगा। सरकार ने मृदा परीक्षण के लिए सेंटर खोल दिये हैं, उसके लिये किसान भाइयों को अपने जरूरी काम छोड़ कर सरकारी सेंटरों तक आने-जाने की दौड़ भाग करनी होती है। यदि यही मृदा परीक्षण का काम घर पर आसान तरीकों से हो जाये तो फिर कहना ही क्या? आज हम आपके लिए वो चार आसान तरीके लेकर आये हैं, जिनसे आप घर बैठे अपनी मिट्टी यानी मृदा का परीक्षण कर सकते हैं।

मिट्टी के परीक्षण के चार आसान तरीके:

प्रथम चरण

मृदा में  पानी को सोखने की क्षमता, अम्लीय या खनिज तत्व की कमी या अधिकता की जानकारी मिल जाने से किसान भाई किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बच सकते हैं। आम तौर पर तीन तरह की मिट्टी होती है। चिकनी मिट्टी, रेतीली मिट्टी या दोमट मिट्टी होती है। 1.चिकनी मिट्टी में पोषक तत्व अधिक होते हैं लेकिन इसमें पानी देर तक बना रहता है। 2.रेतीली मिट्टी में पानी जल्दी से निकल जाता है लेकिन इसमें खनिज तत्व कम होते हैं और क्षारीय होती है। 3.दोमट मिट्टी खेती के लिए सबसे अधिक उपजाऊ होती है। इसमें खनिज तत्व अधिक होते हैं और पानी जल्दी सूख जाता है लेकिन नमी काफी देर तक बनी रहती है। इन मिट्टियों को कैसे पहचानें, पहले चरण में यह है कि आप अपनी मिट्टी गीली नहीं बल्कि नमी वाली मिट्टी हाथ में लें और उसे कसके निचोड़ने की कोशिश करें। जब आप हाथ खोलेंगे तो उसमें तीन तरह के परिणाम सामने आयेंगे उससे पहचान लेगें कि आपकी मिट्टी कौन सी है 1.पहला परिणाम होगा कि जैसे ही आप हाथ खोलेगें तो मिट्टी ढेला बना नजर आयेगा उसे हल्के से प्रहार करेंगे तो वह बिखर जायेगी लेकिन महीन नहीं होगी यानी छोटे-छोटे ढेले बने रहेंगे तो समझिये कि आपकी मिट्टी दोमट मिट्टी है जो खेती के लिए सबसे अधिक उपयोगी होती है। 2.दूसरा परिणाम यह होगा कि मिट्टी निचोड़ने के बाद हाथ खोलेंगे और मिट्टी के ढेले पर हल्का सा प्रहार करेंगे तो यह मिट्टी उस जगह से पिचक जायेगी यानी टूटेगी नहीं। ऐसी स्थिति किसान भाइयों को समझना चाहिये कि उनकी मिट्टी चिकनी मिट्टी है। 3.तीसरा परिणाम यह होगा कि हाथ खोलने के बाद जब मिट्टी के ढेले पर हल्का सा प्रहार करेंगे तो वह पूरी तरह से बिखर जायेगी यानी रेत बन जायेगी । इस तरह से आपकी मिट्टी का परीक्षण हो जायेगा। इसके बाद आपको यह समझना चाहिये कि आपकी मिट्टी कैसी है। मिट्टी में यदि कमियां हों तो उनका उपचार करके अपनी मनचाही फसल उगा सकते हैं। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=30hjGe10MIw&t[/embed]

दूसरा चरण

दूसरे चरण में आपको मिट्टी की जल निकासी की समस्या का परीक्षण करना बताया जा रहा है। खेती में जल निकासी का परीक्षण करना बहुत ही आवश्यक है। जलभराव से कई तरह के फसलों के पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और फसल नष्ट हो जाती है। मिट्टी की जलनिकासी का परीक्षण इस तरह से करें:- जो किसान भाई इस तरह का परीक्षण अपने खेत का करना चाहते हों तो उन्हें वहां पर छह इंच लम्बा और छह इंच चौड़ा तथा एक फुट गहरा गड्ढा खोदना चहिये। इस गड्ढे में पानी भर दें, पहली बार इसका पानी अपने आप निकलने दें। जब एक बार गड्ढे का पानी निकल जाये तो उसमें दोबारा पानी भर दें। इसके बाद उस गड्ढे पर नजर रखें तथा पानी डालने का टाइम नोट करना चाहिये। फिर उसका पानी निकलने का समय नोट करें। यदि पानी निकलने में चार घंटे से अधिक समय लगता है तो आपको समझना चाहिये कि आपकी इस मिट्टी में जल निकासी की समस्या है। यानी जल निकासी की गति काफी धीमी है। इसके बाद उस मिट्टी का उपचार कराना चाहिये। उसके बाद ही कोई फसल बोने की योजना बनानी चाहिये।

तीसरा चरण

अब तीसरे चरण के रूप में हम मिट्टी की उर्वरा शक्ति यानी उसकी जैविक शक्ति का परीक्षण करेंगे। मिट्टी की जैविक शक्ति उसकी उर्वरा शक्ति का परिचय देती है। इसका परीक्षण करके आप मिट्टी की जैविक गतिविधियों की परख कर सकते हैं। इससे आपको मालूम हो सकता है कि आपकी मिट्टी कितनी उपजाऊ  है। क्योंकि यदि आपकी मिट्टी में केंचुए हैं तो आपको यह समझना चाहिये कि आपकी मिट्टी में अन्य तरह के भी बैक्टीरिया व कीट भी हो सकते हैं। केंचुए और बैक्टीरिया तो आपकी खेती के लिए लाभकारी होते हैं और यह मिट्टी को स्वस्थ और उपजाऊ बनाने में मदद करते हैं लेकिन रोगाणु कीट आपकी फसल को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। उनका उपचार आपको पहले से ही करना होगा। 1.जैविक शक्ति का परीक्षण करने के लिए आप यह तय करें कि आपकी मिट्टी कम से कम 55 डिग्री तक गर्म हो गई है। उस स्थिति में मिट्टी में नमी है तब आप मिट्टी में एक फुट लम्बा और एक फुट चौड़ा तथा एक फुट गहरा गड्ढा खोदें। गड्ढे से निकली मिट्टी को किसी कार्ड बोर्ड पर रख लें। 2.इसके बाद आप इस मिट्टी को आप अपने हाथों से छानते हुए उसे गड्ढे में वापस डालने की कोशिश करें। इस प्रक्रिया को पूरा करते समय आप मिट्टी व गड्ढे पर पैनी नजर रखें। मिट्टी को छानते वक्त आपके हाथों में केंचुएं टकराते हैं तो आपको उनकी गिनती करते रहना चाहिये। इस दौरान आपको अपनी मिट्टी में यदि 10 केंचुए मिल जाते हैं तो आपको खुश हो जाना चाहिये क्योंकि इस तरह की मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है और खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जा सकती है। 3.यदि इससे कम केंचुए आपको मिलते हैं तो आपका यह जान लेना चाहिये कि आपकी मिट्टी की जैविक शक्ति बहुत कम है। यह मिट्टी स्वस्थ जैविक बैक्टीरिया वाली नहीं है और इसमें जैविक शक्ति वाले जीवाणुओं को पनपने देने की शक्ति नहीं है। इसका अर्थ यह समझना चाहिये कि आपकी मिट्टी में पर्याप्त कार्बन नहीं है और यह मिट्टी अम्लीय या क्षारीय है। इस तरह की मिट्टी का आवश्यक उपचार कराकर ही उसे फसल योग्य बना सकते हैं। इस तरह के परीक्षण से किसान भाइयों को उर्वरक प्रबंधन में भी काफी मदद मिल सकती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=C4mhtK8HEiY[/embed]

चौथा चरण

किसान भाइयों मिट्टी की अम्ल और क्षार की परख करने के लिए हमें पीएच मान का परीक्षण करना होगा। मिट्टी के अम्ल या क्षारीय स्तर के आधार पर ही यह कहा जा सकता है कि आपकी मिट्टी कितनी उपजाऊ है और उसमें कौन-कौन सी फसल ली जा सकती है और कौन सी नहीं ली जा सकती है। कुछ फसलें कम उपजाऊ वाली मिट्टी में भी उगाई जा सकती है जबकि अधिकांश फसलों के लिए सामान्य पीएच मान वाली मिट्टी चाहिये। इसलिये मिट्टी का पीएच मान निकालना बहुत आवश्यक होता है। इसे दूसरे शब्दों में कहा जाये कि इस पीएच मान पर ही खेती का भाग्य टिका होता है। इसकी जांच के बिना खेती के बारे में फैसला नहीं किया जा सकता है। किसान भाइयों आपकी मिट्टी के अम्लीय स्तर पर सारा कुछ निर्भर करता है कि आपके खेत में पौधे किस तरह से विकसित हो सकते हैं और कौन सी खेती की जा सकती है। पीएम मान का परीक्षण शून्य से लेकर 14 तक किया जा सकता है। इसमें पीएम मान्य शून्य बहुत अम्लीय होता है और 14 बहुत क्षारीय होता है। ये अम्लीय और क्षारीय दोनों एक शब्द नहीं हैं और दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं। हम जानते हैं कि अम्लीय और क्षारीय में क्या अंतर होता है।

1.अम्लीय मिट्टी क्या होती है

अम्लीय मिट्टी उसे माना जा सकता है जिसका पीएच मान शून्य से लेकर 5 या 6 तक होता है। इस मिट्टी में हाइड्रोक्साइड आयन की मात्रा कम हो ती है। यदि इस तरह के घोल के स्वाद की बात करें तो इसका स्वाद खट्टा होता है। पीएच का मान जितना कम होता है, उतनी ही वह मिट्टी अम्लीय अधिक  होती है। इस तरह की मिट्टी में जैविक उर्वरा शक्ति नहीं होती है।

2.क्षारीय मिट्टी क्या होती है

क्षारीय मिट्टी वह होती है जिसका पीएच मान 8 से 14 तक होता है। इस तरह की मिट्टी में हाइड्रोक्साइड आयन की मात्रा ज्यादा होती है। यदि हम इस तरह के घोल की बात करें तो परीक्षण में इसका स्वाद कसैला होता है और इसका लिटमस टेस्ट में रंग नीला होता है। अधिक क्षारीय मिट्टी में फसल व मिट्टी को स्वस्थ बनाने वाले बैक्टीरिया नहीं होते हैं। अच्छी खेती के लिए पीएम मान 6 से सात के बीच सबसे अच्छा माना जाता है। मिट्टी का पीएच मान 5 से कम या 8 से अधिक होता है। इस तरह की मिट्टी में फसल अच्छी नहीं हो सकती। किसान भाइयों इसके लिए प्रत्येक उद्यान केन्द्र में पीएच परीक्षण किट आसानी से मिल जाती है। यह किट काफी अच्छे टेस्टिंग के परिणाम देतीं हैं। इससे आप अपनी मिट्टी के पीएच मान को आसानी से जांच परख सकते हैं। यदि आपकी मिट्टी का पीच मान 6 से 7 के बीच है तो आपको कोई समस्या नहीं है और इससे कम या अधिक होने पर आपको सहकारी सेवा केन्द्रों या जिला कृषि केन्द्रों से सम्पर्क करना होता। वो आपकी मिट्टी को परीक्षण के लिए लैब में भेजेंगे और जांच रिपोर्ट में आपको सारी बातें बताई जायेंगी।  जो कमियां होंगी उनके उपचार के बारे में भी बताया जायेगा।  इस तरह से आप अपनी मिट्टी का सुधार करके अपनी मनचाही फसल ले सकते हैं।
पराली क्यों नहीं जलाना चाहिए? कैसे जानेंगे की आपकी मिट्टी सजीव है की निर्जीव है ?

पराली क्यों नहीं जलाना चाहिए? कैसे जानेंगे की आपकी मिट्टी सजीव है की निर्जीव है ?

आप की मिट्टी की ऊपरी सतह में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव (माइक्रोब्स) ही निर्धारित करते है की आपकी मिट्टी सजीव है या निर्जीव है,निर्जीव मिट्टी को ही बंजर भूमि कहते है। धान का पुआल जलाने से अत्यधिक गर्मी जी वजह से मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव मर जाते है जिसकी वजह से मिट्टी बंजर हो जाती है। पराली जलाने की समस्या को कम करने के लिए इस तथ्य को प्रचारित करने की आवश्यकता है। कोई भी होशियार एवं जागरूक किसान स्वयं अपनी मिट्टी को स्वयं बंजर नही बनाएगा। तात्कालिक लाभ के लिए एवं जानकारी के अभाव में वह अपने पैरों स्वयं कुल्हारी मार रहा है। यह निर्धारित करने में कि मिट्टी जीवित है या निर्जीव है, इसमें इसकी जैविक, रासायनिक और भौतिक विशेषताओं का आकलन करना शामिल है। मिट्टी एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है जो सूक्ष्मजीवों से लेकर केंचुए जैसे बड़े जीवों तक जीवों के विविध समुदाय को मिलाकर बनता है। यह गतिशील वातावरण पौधों के जीवन को समर्थन देने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम विभिन्न संकेतकों और कारकों का पता लगाएंगे जो हमें मिट्टी की जीवित प्रकृति को समझने में मदद करते हैं जैसे.

1. जैविक संकेतक

मिट्टी जीवन से भरपूर है, और इसकी जीवंतता का एक प्रमुख संकेतक सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति है। बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ और नेमाटोड मिट्टी के स्वास्थ्य के आवश्यक घटक हैं। ये जीव पोषक चक्र, कार्बनिक पदार्थ अपघटन और रोग दमन में योगदान करते हैं। मृदा परीक्षण, जैसे माइक्रोबियल बायोमास और गतिविधि परख, इन सूक्ष्मजीवों की प्रचुरता और विविधता में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

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केंचुए एक अन्य महत्वपूर्ण जैविक संकेतक हैं। उनकी बिल खोदने की गतिविधियाँ मिट्टी की संरचना, वातन और जल घुसपैठ को बढ़ाती हैं। केंचुओं की उपस्थिति और विविधता का अवलोकन एक स्वस्थ और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत देता है।

2. रासायनिक संकेतक

मिट्टी की रासायनिक संरचना से भी उसकी जीवंतता का पता चलता है। जीवित मिट्टी की विशेषता एक संतुलित पोषक तत्व है जो पौधों के विकास का समर्थन करती है। पीएच, पोषक तत्व स्तर (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आदि), और कार्बनिक पदार्थ सामग्री के लिए मिट्टी का परीक्षण मिट्टी की उर्वरता और पौधों के जीवन को बनाए रखने की क्षमता का आकलन करने में मदद मिलता है। विघटित पौधे और पशु सामग्री से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ, जीवित मिट्टी का एक प्रमुख घटक है। यह पोषक तत्व प्रदान करता है, जल प्रतिधारण में सुधार करता है और माइक्रोबियल गतिविधि का समर्थन करता है। उच्च कार्बनिक पदार्थ सामग्री जीवंत और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत है।

3. भौतिक संकेतक

मिट्टी की भौतिक संरचना उसकी जीवंतता को प्रभावित करती है। एक स्वस्थ मिट्टी की संरचना उचित जल निकासी, जड़ प्रवेश और वायु परिसंचरण की अनुमति देती है। कणों के बंधन से बनने वाले मृदा समुच्चय, एक अच्छी तरह से संरचित मिट्टी में योगदान करते हैं।

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मिट्टी की बनावट (रेत, गाद, मिट्टी) का अवलोकन करने से इसके भौतिक गुणों के बारे में जानकारी मिल सकती है। जीवित मिट्टी में अक्सर विविध बनावट होती है, जो जल निकासी और जल प्रतिधारण के संतुलित मिश्रण को बढ़ावा देती है। संकुचित या खराब संरचित मिट्टी जैविक गतिविधि की कमी का संकेत देती है।

4. पौधों का स्वास्थ्य

मिट्टी में उगने वाले पौधों का स्वास्थ्य और जीवन शक्ति मिट्टी की जीवंतता का प्रत्यक्ष संकेतक है। हरे-भरे और जोरदार पौधों की वृद्धि पोषक तत्वों से भरपूर और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत देती है। इसके विपरीत, रुका हुआ विकास, पीली पत्तियां, या बीमारियों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता मिट्टी की समस्याओं का संकेत देती है। माइकोराइजा पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हुए, पोषक तत्व ग्रहण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माइकोराइजा की उपस्थिति एक जीवित मिट्टी पारिस्थितिकी तंत्र का संकेतक होती है जो पौधे-सूक्ष्मजीव इंटरैक्शन का समर्थन करती है।

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5. मृदा श्वसन

मृदा श्वसन दर को मापने से माइक्रोबियल गतिविधि का प्रत्यक्ष मूल्यांकन मिलता है। सूक्ष्मजीव मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों का उपभोग करते हैं, श्वसन के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। उच्च मृदा श्वसन दर एक सक्रिय माइक्रोबियल समुदाय का संकेत देती है और पोषक तत्वों के चक्रण में योगदान करती है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष में, यह निर्धारित करने के लिए कि मिट्टी जीवित है या नहीं, इसमें इसकी जैविक, रासायनिक और भौतिक विशेषताओं का व्यापक विश्लेषण शामिल है। सूक्ष्मजीवों और केंचुओं जैसे जैविक संकेतक, पोषक तत्वों के स्तर और कार्बनिक पदार्थ सामग्री जैसे रासायनिक संकेतक और मिट्टी की संरचना जैसे भौतिक संकेतक सामूहिक रूप से मूल्यांकन में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, पौधों के स्वास्थ्य का अवलोकन करना और मृदा श्वसन परीक्षण करने से मिट्टी की गतिशील और जीवित प्रकृति के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। कुल मिलाकर, एक समग्र दृष्टिकोण जो कई संकेतकों पर विचार करता है, मिट्टी की आजीविका की गहन समझ के लिए आवश्यक है।